आर एस मोर महाविद्यालय गोविंदपुर में बिनोद बिहारी महतो की जन्मशती के अवसर पर महाविद्यालय सभागार में महाविद्यालय इतिहास विभाग, अर्थशास्त्र विभाग एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्वावधान में "झारखंड निर्माण में बिनोद बिहारी महतो का योगदान" विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत बिनोद बिहारी महतो के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीपप्रज्वलन कर की गई।
कार्यक्रम में स्वागत संबोधन में महाविद्यालय प्रोफेसर इन चार्ज डॉ राजेन्द्र प्रताप ने कहा कि बिनोद बिहारी महतो जी एक बहुत प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, समाज में फैली बहुत सी कुरीतियों और अन्धविश्वासों के खिलाफ लड़ाई कि शुरुआत करने का श्रेय सबसे पहले इन्हे जाता है। भले आज हमारे बीच बिनोद बिहारी महतो जी नहीं है लेकिन आज उनके द्वारा बनाए गए बहुत सी चीजे मौजूद है जिसे किसी भी हालात में नहीं भुलाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि न सिर्फ धनबाद जिले में बल्कि पुरे झारखण्ड में बिनोद बिहारी महतो जी ने शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए स्कूल एवं कॉलेज बनवाए तथा बनाने में मदद की। उन्होंने कहा कि झारखंड निर्माण बिनोद बिहारी महतो के संघर्ष की परिणीति है।उन्होंने कहा कि बिनोद बिहारी महतो झारखंड आंदोलन के अग्रदूत एवं जनक हैं।
इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 अविनाश कुमार ने अपने सम्बोधन में इस अवसर पर कहा कि बिनोद बिहारी महतो बचपन से ही मेधावी थे। तमाम संघर्ष से पार पाकर उन्होंने समाज में शिक्षा की अलख जगाई । शोषित, पीड़ित ,वंचित, आदिवासी समुदाय की आवाज बने।उन्होंने कहा कि चार फरवरी 1973 को अलग झारखंड राज्य निर्माण के लिए दिशोम गुरु शिबू सोरेन, प्रसिद्ध मजदूर नेता एके राय, टेकलाल महतो आदि के साथ मिलकर उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया। वर्षों अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन कर इसे मुकाम तक पहुंचाया। वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने अलग झारखंड राज्य की घोषणा की।पढ़ो और लड़ो का नारा देने के साथ सामाजिक कुरीतियों के अलावा महाजनी शोषण का भी तीव्र विरोध कर बिनोद बिहारी ने लोगों के साथ आंदोलन चलाया। यही कारण है कि धनबाद और इसके आसपास जिलों के ग्रामीण जागरूक हुए। अपने अधिकार के लिए आवाज उठानी शुरू की। इसका उन्हें परिणाम भी मिला। बिनोद बिहारी सामाजिक कार्य करने के कारण ही वे आज भी ग्रामीणों के दिलों में बसे हैं।
हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो0 विनोद कुमार एक्का ने अपने संबोधन में कहा कि देश आजाद होने के बाद 60 के दशक में बिनोद बिहारी महतो ने शिवाजी समाज का गठन कर सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चलाया। लोगों को शिक्षित करने के लिए सुदूर ग्रामीण इलाकों में उन्होंने अनेक शिक्षण संस्थान खोले। इनके नाम से स्थापित शिक्षण संस्थानों में हजारों बच्चे पढ़ रहे हैं। धनबाद में बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के अलावा धनबाद व गिरिडीह आदि जिलों में महाविद्यालय और विद्यालय इनके नाम से हैं। जगह-जगह इनकी दर्जनों प्रतिमाएं लगी हैं।शिक्षा के माध्यम से उन्होंने झारखंड आंदोलन को धार प्रदान किया।उन्होंने कहा कि बिनोद बिहारी महतो झारखंड आंदोलन के भीष्म पितामह हैं।
इस अवसर पर शंकर रविदास ने कहा कि बिनोद बाबू के बताये रास्ते पर चलकर ही राज्य का संपूर्ण विकास संभव है। उनका मूल मंत्र था पढ़ो और लड़ो।उन्होंने कहा कि बिनोद बाबू गरीबों के मसीहा थे और हमेशा गरीबों की सेवा में रहते थे। झारखंड आंदोलन में उन्होंने अग्रगामी भूमिका निभाई ।
कार्यक्रम में मंच संचालन राजनीतिशास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ अवनीश मौर्या ने किया। धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अजीत कुमार बर्णवाल ने किया। संगोष्ठी में मुख्य रूप से डॉ रत्ना कुमार, डॉ त्रिवेणी महतो, प्रो0 त्रिपुरारी कुमार, प्रो0 सत्य नारायण गोराई, प्रो0 राकेश ठाकुर, प्रो0 इक़बाल अंसारी, प्रदीप महतो, मो0 शारिक, सुजीत मंडल, एस 0 एन0 चौधरी, मनोज तिर्की एवं अन्य उपस्थित थे।