दिनांक 01/04/2022 , दिन - शुक्रवार को "भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान" विषयक सेमिनार प्रतियोगिता का आयोजन आर एस मोर कॉलेज गोविन्दपुर के इतिहास विभाग एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय प्राचार्य डॉ प्रवीण सिंह ने की। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता इतिहास विभाग के प्रो0 अविनाश कुमार थे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता प्रो0 अविनाश कुमार ने झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड की जनजातियों का अप्रतिम योगदान रहा है। सन 1857 के प्रथम संग्राम के करीब 26 साल पहले ही झारखंड की जनजातियों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह किया था। झारखंड की सांस्कृतिक पहचान का राजनीतिक अर्थ भी पहली बार 1831 के कोन विद्रोह से उजागर हुआ था। उन्होंने कहा कि इस विद्रोह के केंद्र थे रांची, सिंहभूम और पलामू। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ यह संभवत: पहला विराट आदिवासी आंदोलन था। इस आंदोलन के नेतृत्कर्ता तिलका मांझी थे। इसके अलावे तमाड़ विद्रोह, बंडू में मुंडा विद्रोह, मानभूम में भूमिज विद्रोह आदि विद्रोह सबसे प्रचलित थे। उन्होंने कहा कि देश की आजादी में झारखंड के महापुरुषों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।
प्राचार्य डॉ प्रवीण सिंह ने कहा कि झारखंड ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान झारखंड को स्थानीय लाभ भी हुआ है। कोयला क्षेत्र में हथियार को छुपाना आसान था। पहली स्वतंत्रता संग्राम (1857), झारखंड में पहले ही छिड़ चुकी थी। यहां की जनजातियाँ पहले से ही ब्रिटिश शासन से अपनी भूमि को मुक्त करने के लिए सशस्त्र संघर्ष की एक श्रृंखला में लगी थीं। यहां के झारखंडियों को तिलका मजी (जबरा पहाड़िया), सिद्धू कान्हू, बिरसा मुंडा, काना भगत आदि जैसे दिग्गज आदिवासी नेताओं ने आदिवासी संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। झारखंड में आदिवासी संघर्ष ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा दी। उन्होंने इस अवसर पर अपनी स्वरचित कविता "झारखंड के वीर सपूत" का पाठ भी किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए इतिहास विभाग के शिक्षक प्रो0 सत्य नारायण गोराई ने झारखंड की महिला स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सरस्वती देवी, राजेश्वरी सरोज दास, शैलबाला राय, जाम्बवती देवी, प्रेमा देवी, उपा रानी मुखर्जी समेत झारखण्ड में एसे अनगिनत नाम हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपनी जान हथेली पर रखकर सम्पूर्ण महिला समाज को सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया। इनके बलिदान और संघर्ष की गाथा इतिहास के पन्नों को आज भी जीवंतता प्रदान कर रही है।
इस अवसर पर प्रो0 विनोद कुमार एक्का ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी कई बार रांची आए. इतिहासकार बताते हैं कि चंपारण सत्याग्रह की रणनीति रांची में ही बनी थी. कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन के दौरान गांधीजी ने जिस कार का इस्तेमाल किया था वो आज भी रांची में सुरक्षित है। कार्यक्रम का संचालन डॉ अवनीश मौर्या ने किया।
कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय प्रोफेसर इन चार्ज डॉ राजेन्द्र प्रताप ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में कार्यक्रम समन्वयक प्रो0 सत्य नारायण गोराई, प्रो0 अविनाश कुमार, डॉ अजित कुमार बर्णवाल, डॉ शबनम परवीन,प्रो0 तरुण कांति खलखो, प्रो0 त्रिपुरारी कुमार, प्रो0 स्नेहलता तिर्की, डॉ कुसुम रानी,डॉ कुहेली बनर्जी, प्रो0 रागिनी शर्मा, प्रो0 स्नेहलता होरो, प्रो0 इक़बाल अंसारी, प्रो0 राकेश ठाकुर, प्रो0 पूजा कुमारी एवं अन्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा।