आर एस मोर महाविद्यालय गोविंदपुर में आज़ादी का अमृत महोत्सव श्रृंखला के अंतर्गत महाविद्यालय हिंदी विभाग के द्वारा महाविद्यालय सभागार में हिंदी दिवस के अवसर पर 'हिंदी भाषा:भारतीय संस्कृति की आत्मा' विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों के द्वारा दीपप्रज्वलन कर किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बीबीएमकेयू धनबाद के कुलपति प्रो0(डॉ) सुकदेव भोई थे।कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय प्राचार्य डॉ प्रवीण सिंह ने की। स्वागत भाषण में संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे आर.एस.मोर महाविद्यालय , गोविंदपुर के प्राचार्य डॉ. प्रवीण सिंह ने कहा कि संस्कृत हिंदी की जननी है, इसे हमें एक दिन नहीं बल्कि प्रतिदिन मनाना चाहिए। किसी भी भाषा का विकास उसके उपयोग के आधार पर होता है हम हिंदी का जितना प्रयोग करेंगे वह उतनी ही समृद्ध होगी।हिंदी भाषा एक संपर्क भाषा है, जो हम लोगों को माला की तरह व आपस में जोड़ने का कार्य करती है।
हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित आज के संगोष्ठी के मुख्य अतिथि बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के कुलपति- प्रो0 (डॉ. )सुकदेव भोई की गरिमामय उपस्थिति रही। उन्होंने अपने संबोधन में भारत में हिंदी भाषा के महत्व और योगदान पर विस्तृत चर्चा की।उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि-एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है। हिंदी भारतीय संस्कृति की आत्मा है। ये देश की विभिन्न भाषाओं को एक सूत्र में पिरोने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि हम सभी चाहते हैं कि हिंदी का अधिकाधिक विकास हो, लेकिन इसके लिए सार्थक प्रयास जरूरी है। आवश्यकता है कि हम सभी हिंदी के महत्व को समझें और दूसरों को भी इसके लिए जागरूक करें। हिंदी हमारी मातृभाषा है और उत्तरी भारत एवं मध्य भारत में अधिक प्रचलन में है। दक्षिण भारत के कुछ प्रदेशों में प्रचलन कम है। राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर पर हिंदी को हर कोई समझता है। इसलिए सभी को आगे बढ़कर हिंदी को कामकाज की भाषा बनाना होगा। तभी हिंदी का सम्मान और बढ़ेगा।उन्होंने कहा कि हिंदी तथा भारतीय भाषाओं में काम करके हम न सिर्फ रोजगार पा सकते हैं बल्कि देश के लिए कुछ सार्थक योगदान भी कर सकते हैं।
संगोष्ठी के विशिष्ठ वक्ता पी के रॉय मेमोरियल महाविद्यालय के हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो. डी. के. चौबे ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है, सभी भाषा का सम्मान होना चाहिए। परन्तु अपनी मातृभाषा से प्रेम होना चाहिए और उसका उपयोग करने में किसी भी प्रकार का संकोच या शर्म का अनुभव नहीं होना चाहिए। साहित्य और भाषा के बिना संस्कृति को बचाया नहीं जा सकता अतः भाषा की संवृद्धि आवश्यक है। इसके साथ ही उन्होंने राधा और कृष्ण के ऊपर लिखित स्वयं की रचना भी सुनाई।
विशिष्ट वक्ता बी.सी.सी.एल. की हिंदी अनुवादक श्रीमति रिन्कू दुबे वैष्णवी ने कहा कि समय के साथ भाषा मे परिवर्तन आवश्यक है, आज हिंदी कंप्यूटर एवं इंटरनेट की प्रिय भाषा बनती जा रही है। अन्य भाषाओं का सम्मान रखना चाहिए परंतु हिंदी हमारी मातृभाषा है और उसे अपनी माँ की तरह ही प्यार करना चाहिए। प्रो. विनोद कुमार एक्का एवं डॉ. कुसुम रानी के द्वारा भी हिंदी दिवस के अवसर पर अपना वक्तव्य रखा। मो0 शारिक ने इस इस अवसर पर काव्य पाठ भी किया।
मंच संचालन हिंदी विभाग की सहायक प्राध्यापिका श्री तरुण कान्ति खलखो एवं धन्यवाद ज्ञापन दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक डॉ.अजित कुमार बर्णवाल ने किया। इस अवसर पर अनुपम, कलीम, सुप्रीति, सूचीसरिता एवं अन्य छात्राओं के द्वारा संस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति की गई।
संगोष्ठी में प्रोफेसर इन चार्ज डॉ. राजेन्द्र प्रताप, डॉ. रत्ना कुमार, प्रो. सुमिरन कुमार रजक, प्रो. स्नेहलता तिर्की, डॉ.कुसुम रानी, डॉ. नीना कुमारी, प्रो. कुहेली बनर्जी, प्रो.त्रिपुरारी कुमार, प्रो प्रकाश कुमार प्रसाद, डॉ अमित प्रसाद, प्रो सत्यनारायण गोराई,डॉ अवनीश मौर्या, प्रो. पूजा कुमारी, प्रो. स्नेहलता होरो, प्रो. राकेश ठाकुर, प्रो.इकबाल अंसारी, मो. शारिक, श्री शंकर रविदास,मनोज तिर्की, मो गोश अश्वी सहित सैकड़ों की संख्या में महाविद्यालय के छात्र उपस्थित थे।